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उत्तराखंड स्थापना दिवस पर प्रगतिशील भोजन माताओं ने उठाई आवाज़, दशकों की उपेक्षा पर किया प्रदर्शन।

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रामनगर।उत्तराखंड राज्य की 25वीं वर्षगांठ पर राज्य के नागरिकों की खुशहाली की बातें हों या वास्तविकता, हालात बताते हैं कि कई वर्ग अभी भी उपेक्षा और कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। इसी कड़ी में प्रगतिशील भोजन माता संगठन ने आज शहीद पार्क, लखनपुर चुंगी, रामनगर में एक भव्य सभा आयोजित कर अपनी लगातार बढ़ती समस्याओं और माँगों को उजागर किया।

संगठन की अध्यक्ष शारदा ने कहा, “हमें स्कूलों में लगातार कार्यरत किया जा रहा है, लेकिन न तो हम सरकारी कर्मचारी हैं और न ही हमें सम्मानजनक मानदेय मिलता है।”

विमला ने बताया कि पिछले 20-25 वर्षों से उनका मानदेय महज 250 रुपए से शुरू हुआ था, जो आज केवल ₹3000 है, और इसके बावजूद उन्हें मानसिक उत्पीड़न और जाति आधारित भेदभाव का सामना करना पड़ता है। वहीं पद्मा ने कहा, “हम केवल खाना नहीं बनातीं, बल्कि स्कूलों की सफाई और कभी-कभी शिक्षक के घर का काम भी करना पड़ता है।”

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चंपा ने चेताया कि कई जगह आज भी भोजन माताएं लकड़ी के चूल्हे में खाना बना रही हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। फिरदौस ने कहा कि वे कुशल श्रेणी के काम कर रही हैं, लेकिन उनके लिए कुशल मजदूरों का मानदेय भी नहीं दिया गया।

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सभा में अन्य साथियों ने भी समस्याओं का जिक्र किया, जैसे चुनाव में ड्यूटी लगाना, स्कूलों का विलय या बंद होना, और उम्र या बच्चों की संख्या के आधार पर कार्य से हटाया जाना।

सभा में इंकलाबी मजदूर केन्द्र, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र और परिवर्तन कामी छात्र संगठन ने भी भागीदारी की।

प्रमुख मांगें:

  1. भोजन माताओं का न्यूनतम मानदेय ₹18,000 किया जाए।
  2. घोषित मानदेय ₹5,000 तत्काल जारी किया जाए।
  3. मानदेय 12 माह का दिया जाए।
  4. भोजन माताओं को स्थाई किया जाए।
  5. प्रत्येक स्कूल में 26 से अधिक बच्चे होने पर दूसरी भोजन माता नियुक्त की जाए।
  6. शिक्षकों द्वारा मानसिक उत्पीड़न बंद किया जाए।
  7. अन्य कर्मचारियों की तरह पीएफ, पेंशन, 14 दिन का अवकाश, प्रसूति अवकाश प्रदान किया जाए।
  8. सभी कार्यस्थलों पर धुएं से मुक्ति सुनिश्चित की जाए।
  9. बच्चों की संख्या कम होने, पाल्य न होने या 60 वर्ष की आयु होने पर कार्य से हटाया न जाए।
  10. अक्षय पत्र फाउंडेशन पर रोक लगाई जाए।
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अध्यक्ष शारदा ने सभा का संचालन करते हुए कहा, “हमारे हक की लड़ाई केवल हमारी नहीं, बल्कि उत्तराखंड के हर ऐसे नागरिक के लिए है, जिसे न्याय और सम्मान की जरूरत है।”