
ICICI फाउंडेशन, NIH रुड़की और कॉर्बेट प्रबंधन की साझी रणनीति — रिजर्व में होगा वैज्ञानिक वाटरशेड मैपिंग
रामनगर।कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में वन्यजीवों के लिए वर्षभर जल उपलब्धता सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया गया है। इस उद्देश्य से कॉर्बेट टाइगर रिजर्व, ICICI Foundation for Inclusive Growth और National Institute of Hydrology (NIH), रुड़की के प्रतिनिधियों की एक संयुक्त बैठक आयोजित की गई।बैठक में ICICI फाउंडेशन द्वारा अपने कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR) कार्यक्रम के अंतर्गत रिजर्व क्षेत्र में जल संरक्षण से जुड़ी परियोजना पर विस्तार से चर्चा की गई।
इस अवसर पर कॉर्बेट प्रबंधन, ICICI फाउंडेशन और NIH रुड़की के विशेषज्ञ उपस्थित रहे।बैठक में निर्णय लिया गया कि इस संयुक्त पहल के तहत कॉर्बेट टाइगर रिजर्व का विस्तृत वाटरशेड मैपिंग किया जाएगा। इसमें सभी जल स्रोतों, नालों, ड्रेनेज पैटर्न, भू-जल क्षमता (Groundwater Potential) और ढाल (Slope) का वैज्ञानिक अध्ययन शामिल रहेगा।
अध्ययन के आधार पर—
वन्यजीवों के लिए वर्षभर जल उपलब्धता सुनिश्चित करने के उपाय चिन्हित किए जाएंगे।
नए और बड़े वाटर होल्स (जलकुंड) के स्थान तय किए जाएंगे।
फॉरेस्ट चौकियों के लिए जल आपूर्ति स्रोतों की पहचान की जाएगी।
मानसूनी जल को सरफेस रन-ऑफ से रोककर ग्राउंडवाटर रिचार्ज बढ़ाने की दिशा में कार्य होगा।
कार्यक्रम के अंतर्गत प्रस्तावित बड़े वाटर होल्स को इस प्रकार डिजाइन किया जाएगा कि उनमें हाथियों के झुंड जैसे बड़े वन्यजीव भी सहजता से जल ग्रहण कर सकें।
बैठक में यह भी सहमति बनी कि परियोजना के प्रारंभिक चरण में रिजर्व की सभी रेंजों में जल संसाधनों का फील्ड सर्वे कर वैज्ञानिक रिपोर्ट तैयार की जाएगी। इसके आधार पर दीर्घकालिक जल संरक्षण, रिचार्ज और प्रबंधन रणनीति बनाई जाएगी।
बैठक में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व की ओर से निदेशक डॉ. साकेत बडोला, उपनिदेशक राहुल मिश्रा, उपवन संरक्षक (एसडीओ) अमित ग्वासीकोटी, और प्रशासनिक अधिकारी मोहित सिंह राठौर उपस्थित रहे।
ICICI Foundation की ओर से डेवलपमेंट ऑफिसर यतेंद्र कुमार, तथा NIH रुड़की से वैज्ञानिक डॉ. प्रदीप कुमार, डॉ. राजेश सिंह, और डॉ. सुजाता कश्यप शामिल हुए।
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने बताया कि यह पहल उत्तराखंड के वन क्षेत्रों में जल संरक्षण और वन्यजीव प्रबंधन की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर सिद्ध होगी। इससे रिजर्व क्षेत्र में जल स्रोतों की स्थायित्व बढ़ेगी और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र में जल संतुलन और अधिक सुदृढ़ होगा।
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