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गुस्से की लहर में बहती नई पीढ़ी – समाज पर खतरे की घंटी

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आज के समय में अगर हम समाज की धड़कन को महसूस करें तो उसमें सबसे तेज़ आवाज़ युवाओं की सुनाई देती है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि यह आवाज़ अक्सर गुस्से, आक्रोश और असहिष्णुता के रूप में सामने आती है। छोटे-छोटे बच्चे तक बिना वजह चिड़चिड़े और आक्रोशित दिखाई देने लगे हैं। सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?

युवाओं और बच्चों में गुस्से के बढ़ने के कारण

1. तेज़ रफ़्तार जीवनशैली और दबाव

पढ़ाई, करियर, प्रतियोगिता और सफलता की अंधी दौड़ युवाओं को बेचैन कर रही है। नाकामी या छोटी सी असफलता गुस्से का रूप ले लेती है।

2. टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया का प्रभाव

डिजिटल दुनिया ने युवाओं को अधीर बना दिया है। सबकुछ तुरंत चाहिए—लाइक, शेयर, सफलता, पैसा। ज़रा सी देरी या असहमति गुस्से को भड़का देती है।

3. परिवार और समाज में संवाद की कमी

पहले घर में संयुक्त परिवार होते थे, जहाँ गुस्सा प्यार और समझदारी से शांत किया जाता था। आज अकेलापन और संवादहीनता युवाओं को चिड़चिड़ा बना रही है।

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4. मानसिक तनाव और प्रतिस्पर्धा

पढ़ाई से लेकर नौकरी तक हर जगह तनाव है। ये दबाव धीरे-धीरे गुस्से और आक्रोश का रूप ले लेता है।

5. अनुशासन और सहनशीलता का अभाव

बच्चों को छोटी उम्र से ही धैर्य और सहनशीलता नहीं सिखाई जा रही। परिणामस्वरूप वे ज़रा सी रोक-टोक पर नाराज़ हो जाते हैं।

गुस्से से होने वाले नुकसान

स्वास्थ्य पर बुरा असर : गुस्से से उच्च रक्तचाप, दिल की बीमारियाँ और मानसिक रोग बढ़ते हैं।

संबंधों में दरार : परिवार, दोस्त और रिश्तों में गुस्से से दूरी पैदा होती है।

निर्णय क्षमता कम होना : गुस्से की हालत में लिए गए फैसले अक्सर गलत होते हैं।

समाज में हिंसा और अपराध : छोटी-सी बात पर झगड़े, मारपीट और अपराधों का कारण गुस्सा ही है।

समाज के लिए कितना हानिकारक है गुस्सा

युवाओं का गुस्सा केवल व्यक्तिगत स्तर पर नुकसान नहीं करता, बल्कि पूरे समाज की शांति को भंग कर देता है। बढ़ते अपराध, सड़क हादसे, घरेलू हिंसा और मानसिक अस्थिरता इसी आक्रोश की उपज हैं। अगर यह प्रवृत्ति नियंत्रित न की जाए तो आने वाली पीढ़ी और भी असंवेदनशील और असहिष्णु बन सकती है।

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गुस्से पर नियंत्रण कैसे किया जा सकता है?

1. धैर्य और ध्यान (Meditation) का अभ्यास

प्रतिदिन कुछ समय ध्यान, योग और प्राणायाम करने से मन शांत होता है।

2. संवाद को बढ़ावा दें

परिवार और दोस्तों से खुलकर बात करने की आदत डालें। संवाद गुस्से की आग को ठंडा करता है।

3. समय प्रबंधन और लक्ष्य निर्धारण

अपनी ऊर्जा को सही दिशा में लगाएँ। व्यस्त और अनुशासित जीवन गुस्से को कम करता है।

4. सोशल मीडिया का संतुलित उपयोग

फिजूल की बहसों और आक्रामक सामग्री से दूरी बनाएँ।

5. सकारात्मक सोच अपनाएँ

हर परिस्थिति को चुनौती की तरह लें, समस्या की तरह नहीं।

बुद्धिजीवियों की राय

महात्मा गांधी ने कहा था—“गुस्सा और असहिष्णुता सही समझ के दुश्मन हैं।”

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स्वामी विवेकानंद ने युवाओं से आह्वान किया था कि अपनी ऊर्जा को आत्मबल और समाज निर्माण में लगाएँ, न कि विनाश में।

आधुनिक मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि गुस्से को दबाने की बजाय सही दिशा में मोड़ना ज़रूरी है।

सुझाव

परिवार बच्चों को धैर्य और सहनशीलता सिखाए।

स्कूलों और कॉलेजों में माइंडफुलनेस और काउंसलिंग को बढ़ावा दिया जाए।

समाज में खेल, कला और सकारात्मक गतिविधियों को बढ़ावा मिले ताकि युवाओं की ऊर्जा सही दिशा में लगे।

हर व्यक्ति खुद पर नियंत्रण रखना सीखे, क्योंकि गुस्सा जीतकर ही हम खुद को और समाज को बेहतर बना सकते हैं।

निष्कर्ष

गुस्सा एक स्वाभाविक भावना है, लेकिन जब यह हद से बाहर हो जाए तो व्यक्ति, परिवार और समाज के लिए खतरा बन जाता है। युवाओं को समझना होगा कि गुस्सा उनकी ताकत नहीं बल्कि कमजोरी है। धैर्य, समझ और आत्मनियंत्रण ही वह रास्ता है जिससे एक शांत, सुखी और विकसित समाज का निर्माण संभव है।