
उत्तरकाशी। धराली की भयावह आपदा को पूरे दस दिन बीत चुके हैं, लेकिन यहां के लोगों की ज़िंदगी अब भी मलबे और खामोशी के बीच ठहरी हुई है। दर्द ऐसा, मानो समय ने ज़ख्मों को भरने से इंकार कर दिया हो।

आपदा दिन में काली रात का रूप धारण करके आई और मलवे में अपने साथ लोगो को बहा कर ले गई। गुम हुए लोग अब भी मलबे के नीचे दफन हैं। रेस्क्यू टीमें दिन-रात अपने हाथों में उम्मीद की मशाल लिए, पत्थरों और गाद के नीचे दबे जीवन की तलाश में जुटी हैं। गांव के आंगनों में आज भी किसी अपने की आहट का इंतज़ार, आंखों में एक आखिरी उम्मीद के साथ पनप रहा है।

मगर आसमान अब भी मेहरबान नहीं हुआ। लगातार हो रही बारिश से नदी, गाड़ और गदेरे रौद्र रूप में हैं। हर तेज़ बहाव के साथ आसपास के घरों पर खतरा मंडरा रहा है। रास्ते बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके हैं, और लोग अपने घर तक पहुंचने के लिए घंटों पैदल सफर कर रहे हैं।

धराली त्रासदी को अपनी आंखों से देखने वाले लोग कहते हैं— “ऐसा मंजर हमने कभी नहीं देखा… सैलाब की लहरें घरों और होटलों को जड़ से उखाड़कर ले गईं, और पलक झपकते ही कई ज़िंदगियां मिट्टी में मिल गईं।”

तबाही के इस बीच प्रशासन अपने स्तर पर बिजली-पानी बहाल करने में जुटा है। वहीं, रेस्क्यू टीमें अब भी मलवे में दबे लोगों को तलाश रही हैं, शायद कोई चमत्कार हो जाए।

इस सबके बीच, हर्षिल-धराली में हो रही अतिवृष्टि ने नई चिंता खड़ी कर दी है। भागीरथी नदी में बनी झील प्रशासन के लिए एक और चुनौती है। टीमें चौकस हैं, ताकि पानी को नियंत्रित तरीके से छोड़ा जा सके और किसी नई त्रासदी को टाला जा सके।

धराली आज सिर्फ एक जगह का नाम नहीं, बल्कि दर्द, साहस और उम्मीद की अधूरी कहानी बन चुका है।

रिपोर्ट:कीर्ति निधि साजवान,उत्तरकाशी।
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