
रामनगर।समाजवादी लोक मंच के संयोजक मुनीश कुमार ने एक प्रेस रिलीज जारी कर उसमें कहा है कि उत्तराखंड के धराली क्षेत्र में 5 अगस्त को आई आपदा ने एक बार फिर हिमालय में हो रहे अंधाधुंध विकास कार्यों और सरकारी उदासीनता की पोल खोल दी है। यह हादसा केवल एक प्राकृतिक आपदा नहीं बल्कि मानव निर्मित त्रासदी का स्पष्ट संकेत है, जिसे वर्षों से नजरअंदाज किया जा रहा था।
धराली का बाजार, होटल और होम स्टे हिम नदी ‘खीर गंगा’ के जलग्रहण क्षेत्र में बनाए गए हैं, जो एक बेहद ढलान वाला संवेदनशील भूभाग है। वर्ष 2023 में ही पर्यावरणविद विजय जुयाल ने इस क्षेत्र में हो रहे बेतरतीब निर्माण और सड़कों को चौड़ा करने के नाम पर 6,000 पेड़ों की कटाई को लेकर चेतावनी दी थी। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि कंक्रीट की दीवारें हिम नदियों की विनाशलीला को नहीं रोक सकतीं — और आज वही आशंका हकीकत बन चुकी है।
5 अगस्त 2025 को खीर गंगा नदी में आए सैलाब ने 60-65 फीट ऊंचा मलबा लाकर धराली के पूरे बाजार को निगल लिया। स्थानीय नागरिकों के साथ बड़ी संख्या में पर्यटक भी लापता हैं। हर्षिल स्थित सेना कैंप से भी 9 जवानों के लापता होने की खबर है।
भूटान के वरिष्ठ भूवैज्ञानिक इमरान खान ने बताया कि धराली से 7 किमी ऊपर 6700 मीटर की ऊंचाई पर ग्लेशियर के पास 300 मीटर मोटा मलवा जमा था, जो एक किलोमीटर से अधिक तक फैला हुआ था। भारी बारिश और बादल फटने की घटना के बाद यह मलबा एक झटके में बहता हुआ धराली तक पहुंचा और तबाही मचा गया।
क्या सरकारें सबक लेंगी?
1978 से लेकर 2013 की केदारनाथ त्रासदी और अब धराली आपदा — हर आपदा ने हिमालयी क्षेत्र की नाजुक पारिस्थितिकी को नजरअंदाज करने की कीमत चुकवाई है।
जहां पहले पहाड़ों में आवाजाही सीमित और पर्यावरणीय दृष्टि से संतुलित थी, वहीं अब आल वेदर रोड, टनल्स, जल विद्युत परियोजनाएं और अंधाधुंध पर्यटन ने इस संतुलन को तहस-नहस कर दिया है।
केदारनाथ त्रासदी में जलविद्युत परियोजनाओं की भूमिका पहले ही उजागर हो चुकी है, जहां 10,000 से अधिक लोगों की जान गई थी। फिर भी न सड़कों के चौड़ीकरण पर रोक लगी, न पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर।
सवाल अब बड़ा है:
क्या हम फिर वही दोहराएंगे? कुछ दिन डर, बहसें और बयानबाजी के बाद फिर चुप्पी? या अब उत्तराखंड की जनता संगठित होकर विकास के इस विनाशकारी मॉडल के खिलाफ आवाज उठाएगी?
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