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वनग्रामों की उम्मीदों पर फिर फिरा पानी, मुख्यमंत्री की घोषणाओं में नहीं हुआ वन ग्रामों का जिक्र

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रामनगर।राज्य स्थापना दिवस की रजत जयंती पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के संबोधन ने वनग्रामों की जनता को एक बार फिर निराश कर दिया। मुख्यमंत्री की घोषणाओं में न तो वनग्रामों को राजस्व ग्राम का दर्जा देने का उल्लेख हुआ, न ही इन क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं से जुड़ी किसी नई योजना का ऐलान।

रामपुर, लेटी और चोपड़ा जैसे गांव पहले ही वनाधिकार कानून 2006 के तहत राजस्व ग्राम घोषित हो चुके हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री द्वारा बिजली और पानी की सुविधाओं की पुनरावृत्ति मात्र पुरानी घोषणाओं को दोहराने जैसा रहा।

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स्थानीय भाजपा नेताओं के आश्वासन पर बड़ी संख्या में गोठ और खत्तों के लोग मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में शामिल हुए थे। ग्रामीणों को उम्मीद थी कि इस अवसर पर उनके गांवों को भी राजस्व ग्राम का दर्जा मिलेगा और घरों में रोशनी आने की राह आसान होगी। लेकिन मुख्यमंत्री के भाषण में वनग्रामों का जिक्र तक न होना ग्रामीणों की उम्मीदों पर ठंडा पानी डाल गया।

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ग्रामीणों का कहना है कि भाजपा नेताओं ने उन्हें केवल भीड़ के तौर पर कार्यक्रम में बुलाकर इस्तेमाल किया।

अपने संबोधन में मुख्यमंत्री ने जहां वन्यजीवों और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सरकार के प्रयासों का बखान किया, वहीं पिछले 25 वर्षों में जंगली जानवरों के हमलों में मारे गए 1200 से अधिक लोगों और 6000 से अधिक घायलों पर कोई टिप्पणी नहीं की।

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ग्रामीणों का कहना है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार के पास अब भी इंसानों, मवेशियों और फसलों को जंगली जानवरों से बचाने की कोई ठोस योजना नहीं है।
उनके अनुसार, “ऐसा प्रतीत होता है मानो उत्तराखंड के लोग आने वाले वर्षों में भी वन्यजीवों के हमलों का शिकार बनने के लिए अभिशप्त हैं।”