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हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: बिना पंजीकरण वाले मदरसे नाम के आगे ‘मदरसा’ नहीं लिख सकेंगे, सील संस्थान सशर्त खोले जाएंगे

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नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रदेश में बिना पंजीकरण संचालित हो रहे मदरसों को लेकर अहम आदेश दिया है। वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने साफ किया कि जो संस्थान मदरसा बोर्ड में पंजीकृत नहीं हैं, वे अपने नाम के आगे ‘मदरसा’ शब्द का प्रयोग नहीं करेंगे। अगर ऐसा होता है तो जिला प्रशासन उन पर कार्रवाई कर सकेगा।

🔹 सील मदरसे सशर्त खोलने की अनुमति

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कोर्ट ने यह भी निर्देश दिए कि 14 अप्रैल 2025 को जिला प्रशासन द्वारा सील किए गए मदरसों को खोला जाए। हालांकि, संस्थानों को शपथपत्र देना होगा कि वहां किसी प्रकार की शैक्षणिक गतिविधि नहीं होगी। इन भवनों का आगे कैसे उपयोग किया जाएगा, इस पर फैसला राज्य सरकार करेगी।

🔹 धार्मिक गतिविधियों की छूट

हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि सील हटने के बाद भी इन संस्थानों में केवल मकतब से जुड़े धार्मिक कार्य और नमाज आयोजित करने की अनुमति रहेगी। लेकिन बिना रजिस्ट्रेशन औपचारिक शिक्षा देना प्रतिबंधित होगा।

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🔹 सरकार और मदरसों की दलीलें

मदरसों की ओर से दलील दी गई कि उन्होंने पंजीकरण के लिए आवेदन किया हुआ है लेकिन अनुमति नहीं मिली।

सरकार की ओर से कहा गया कि प्रदेश में वर्तमान में 416 मदरसे पंजीकृत हैं, जबकि कई संस्थान बिना अनुमति और नियमों के उल्लंघन के चलते संचालित हो रहे थे।

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इन गैर-पंजीकृत मदरसों में शिक्षण, धार्मिक अनुष्ठान और नमाज जैसी गतिविधियां चल रही थीं, जिस कारण कार्रवाई की गई।

🔹 किन मदरसों ने दी थी चुनौती?

सील किए गए मदरसों में मदरसा अब्बू बकर सिद्धकी, मदरसा जिनन्त उल कुरान, मदरसा दारुल उल इस्लामिया समेत करीब 33 से अधिक मदरसे शामिल हैं। इन संस्थानों ने हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर कर प्रशासन की कार्रवाई को चुनौती दी थी।