उत्तराखंडकुमाऊंनैनीताल

कुली बेगार आंदोलन के हुए सौ बर्ष पूरे,याद में हुए विभिन्न कार्यक्रम ।

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रामनगर-आजादी के आंदोलन की महत्वपूर्ण घटना कुली बेगार आंदोलन के सौ साल पूरे होने के अवसर पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये गए।ग्रेट मिशन पब्लिक स्कूल भरतपुरी में रचनात्मक शिक्षक मण्डल की पहल पर हुए कार्यक्रम की शुरुआत सौ साल पहले हुए कुली बेगार आंदोलन के दौरान गौर्दा लिखित गीत झन दिया दाज्यू कुली बेगारा से हुई।उसके पश्चात अभिनय नाट्य मंच के ललित बिष्ट एवम उन्नति नेगी द्वारा बच्चों को थियेटर के माध्यम से कुली बेगार आंदोलन की जानकारी दी गयी।बच्चों ने उसका मंचन भी किया।

ततपश्चात शिक्षक मण्डल संयोजक नवेंदु मठपाल ने उस आंदोलन के बारे में बताते हुए कहा उत्तराखंड के स्वतंत्रता संग्राम तथा अन्य जनान्दोलनों की बुनियाद है कुली बेगार आंदोलन।13 जनवरी1921 मकर संक्रांति के दिन बागेश्वर के सरयूबगड़ में दसहजार से अधिक आजादी के दीवानों ने गुलामी और कलंक के प्रतीक कुली बेगार के रजिस्टर को सरयू नदी में प्रवाहित कर दिया और फिर बेगार नहीं देने की शपथ ली. इस हिंसा रहित जनक्रांति के नायक हरगोविंद पंत चिरंजीलाल तथा बद्री दत्त पांडे आदि कुमाऊँ परिषद के नेता थे.कुलीबेगार उतार आंदोलन यद्यपि कुमाऊँ की एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय घटना थी लेकिन इसका संबंध देश में रौलट एक्ट की विरोध से उपजे सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन से भी था।
हरगोविंद पंत के आह्वान पर कुली बेगार के रजिस्टर सरयू में प्रवाहित कर दिए गए और लोगों ने सरयू के जल से संकल्प लिया कि अब भविष्य में कुली बेगार नहीं देंगे. डिप्टी कमिश्नर डायबिल मेले के दौरान डाक बंगले में ठहरा हुआ था. उसने हरगोविंद पंत, बद्री दत्त पांडे और चिरंजीलाल को बुलाकर डांट-फटकार लगाई और कहा एक दिन में कुली बेगार खत्म नहीं हो सकती। लेकिन इससे आंदोलनकारी नहीं डरे.हरगोविंद पंत ने वापसी में यह संदेश जनता के बीच दिया.कि “यदि आपका साथ रहा तो कुली बेगार आज ही हटेगी अन्यथा यहां से मेरी लाश जाएगी “यह वक्तब्य हरगोविंद पंत ने दिया ,जिससे जनता और अधिक उद्वेलित हो गई. बचे हुए रजिस्टर भी मालगुजार द्वारा सरयू नदी के जल में प्रवाहित कर दिए गए. अब जनता को मालगुजार और थोकदारो का भी समर्थन हासिल हो गया । डायबिल जनता के दबाव में था और बल प्रयोग नहीं कर सका।
एक तरफ बड़ी संख्या में बागेश्वर में स्थानीय नागरिक थे ।वहीं डायबिल ल के पास मात्र 21 अफसर, 25 सिपाही और 500 गोलियां ही थी. इससे भी बड़ी बात यह थी कि थोकदार और मालगुजार भी पक्ष में न होकर जनता के साथ खड़े थे. और हिंसा रहित रक्त हीन क्रांति सरयू के बगड में संपन्न हुई।इस प्रकार वर्ष 1921 में उत्तरायणी के दिन कलंक की बड़ी दास्तान यानी कुली बेगार “का समूचा हिसाब सरयू नदी में प्रवाहित कर दिया गया. कुली बेगार आंदोलन की सफलता ने उत्तराखंड में आजादी की लड़ाई में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सरयू का यह संदेश कुमाऊँ तथा गढ़वाल के अन्य भागों श्रीनगर और ककोडाखल में भी पहुंचा जहां आंदोलनकारियों का उत्साह द्विगुणित हो गया । जिससे आजादी की लड़ाई और तेज हो गयी।बच्चों ने इस दौरान वरिष्ठ चित्रकार सुरेशलाल के दिशा निर्देशन में उस आंदोलन का चित्रण किया।बच्चों ने भाषण भी दिए।प्रतिभागी बच्चों को पुरुस्कृत भी किया गया।इस दौरान मंजुला श्रीवास्तव नलिनी श्रीवास्तव,नन्दराम आर्य,सुभाष गोला,,जगदीश सती,हेम पांडे,रेनू मिश्रा,रेखा पांडे,संगीता बाथम,सोनी नेगी,सोनल मिश्रा,कुमकुम जोशी मौजूद रहे।शिक्षक मण्डल द्वारा ही सन्चालित स्कूली बच्चों के व्हाटसअप ग्रुप जश्न ए बचपन में भी मुक्त विश्वविद्यालय हल्द्वानी के इतिहास विभाग के प्रो गिरिजा पांडे ने प्रतिभागी बच्चों को कुली बेगार आंदोलन के समानांतर देश में चल रहे अन्य आंदोलनों की भी जानकारी दी।कुली बेगार आंदोलन को भी विस्तार से समझाया।

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