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पौराणिक संस्कृति परम्परा पर आधारित सेलकु मेले का समापन।

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सुभाष बडोनी,उत्तरकाशी

उत्तरकाशी। उत्तराखंड को देवभूमि यूँ ही नहीं कहा जाता है, यहां पर देव पूजाओं से लेकर मेले -त्यौहारो में देव शक्तियों का एक अलग ही रूप देखने को मिलता है।

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यूँ तो उत्तरकाशी जनपद गंगा घाटी से लेकर यमुना घाटी तक अपनी एक विलक्षण और समृद्ध विरासत सहित संस्कृति और परम्परा के लिए विश्व विख्यात है। तो वहीं आज हम आपको उत्तरकाशी के उपला टकनौर और टकनौर के पौराणिक सेलकु मेले के बारे में बताते हैं, जिसका समापन  मां गंगा के शीतकालीन प्रवास और भारत-चीन अन्तर्राष्ट्रीय सीमा के अंतिम गांव मुखबा में हिमायल क्षेत्र के राजा कहे जाने वाले समेश्वर देवता के आसन के साथ हुआ।

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समेश्वर देवता के पश्वा यह आसन नुकली डांगरियों (छोटी कुल्हाडियो)के ऊपर चलकर लगाते हैं और साथ में श्रधांलुओं और अपने ग्रामीणों को आशीर्वाद देते हैं और उनकी समस्या का समाधान करते हैं।यह सेलकु मेला ध्याणीयों (ससुराल गई बहनों) का कहा जाता है। इस मेले के लिए सभी सुसराल गई बहने अपने मायके उपला टकनौर के मुखबा सहित अन्य गांव पहुंचते हैं और अपनी भेंट समेश्वर देवता को देते है।

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इस दो दिवसीय सेलकु मेले में जहाँ पहली रात ग्रामीण रासो तांदी नृत्य के साथ भेलो घुमाते हैं, तो अगले दिन दिन में देवडोली को कंधे पर नचाने के साथ रासो तांदी का आयोजन करते हैं।