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क़ुदरत की कारीगरी का खूबसूरत नज़ारा देखना है तो एक बार यहाँ ज़रूर विजिट करे।

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उत्तरकाशी-उत्तराखण्ड को कुदरत ने खूबसूरती के ख़ज़ानों से नवाज़ा है।फिर चाहे फूलो की घाटी हो या ऊँचाई वाले क्षेत्रों में बुग्याल और ग्लेशियरों से बने ताल कुदरत की कारीगरी के खूबसूरत नमूने है।जिन्हें देखने के लिए देश विदेश सैलानी यहाँ पहुँचते है।यहाँ की वादियों से प्राचीन पांडव कालीन इतिहास भी जुड़ा है।स्थानीय लोगो की सरकार से माँग है कि शस्त्रताल ट्रैक को विश्व मान चित्र पर जगह दी जाये क्योंकि यहाँ पर रोमांच के साथ धार्मिक मान्यता और रोचक रहस्य छिपे है।

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पहाड़ो में प्रकृति का खूबसूरत नजारा।

भटवाड़ी ब्लॉक के सिल्ला गांव से शुरू करीब 45 किमी लम्बे सहस्त्रताल ट्रैक,जिस पर सिल्ला गांव के साथ ही टिहरी क्षेत्र के घनसाली से भी पहुंचा जा सकता है। सहस्त्रताल करीब 15000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। जहां पहुंचने के लिए कुश कल्याण बुग्याल,बावनी सहित क्यारकी बुग्याल और द्रौपदी की धारा,परी ताल और भीमताल को पार कर पहुंचा जाता है। तो वहीं क्यारकी बुग्याल जहां पर बुग्याल में फूलों की क्यारी फैली हुई है। जिसे पांडवों की खेती कहा जाता है।

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मनमोहक नज़ारों का करे दीदार देखे यह वीडियो

लोकमान्यताओं के अनुसार महाभारत काल मे अज्ञातवास के दौरान पांच पांडव द्रौपदी के साथ कुश कल्याण होते हुए सहस्त्रताल पहुंचे। जहां पर उन्होंने अपने अज्ञातवास के दौरान खेती की थी। जिसके पाषाण निशान,भीम का डाबर, द्रौपदी की काँठी, घोड़ों धनुष के पाषाण निशान मौजूद हैं। साथ ही मान्यता है कि सहस्त्रताल से पहले परीताल में आज भी परियां स्नान करती हैं। जिन्हें पहाडों में आछरियाँ कहा जाता है।देश-विदेश से सैलानी यहाँ आकर स्वर्ग का सा नज़ारा देख सुख की अनुभूति प्राप्त करते है। वहीं स्थानीय लोगों की मांग है कि सहस्त्र ताल ट्रैक को विश्व मानचित्र पर जगह दी जानी चाहिए। क्योंकि यहां पर रोमांच के साथ धार्मिक मान्यताएं और आज भी कई रहस्य छुपे हुए हैं।