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रामनगर पूछड़ी विवाद: अतिक्रमण, हिरासत और कानून की अनदेखी पर नागरिकों की आपत्ति

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रामनगर। उत्तराखंड के रामनगर तहसील के पूछड़ी गांव में कानून और न्याय की धज्जियां उड़ती दिख रही हैं। ग्राम स्तरीय वन अधिकार समिति के गठन के बावजूद प्रशासन और वन विभाग ने गांववासियों के घर और जमीन पर अतिक्रमण शुरू कर दिया है।जिसको लेकर समाजवादी लोक मंच के संयोजक मुनीष कुमार और उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के महासचिव प्रभात ध्यानी ने संयुक्त रूप से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर प्रदेश की भाजपा सरकार पर प्रदेश में कानून व्यवस्था ठप और मनमानी करने के आरोप लगाए हैं।

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जानकारी के अनुसार, पूछड़ी क्षेत्र में पिछले वर्ष वन अधिकार कानून 2006 के तहत समिति का गठन हो चुका था, जो कि कानूनन यह सुनिश्चित करती है कि भूमि पर अधिकार की प्रक्रिया पूरी होने से पहले किसी को बेदखल नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद 39 लोगों को जिनके पास हाईकोर्ट स्टे है, प्रशासन ने उनकी जमीन और घर से बेदखल किया।

1966 में आरक्षित वन क्षेत्र घोषित किए गए इस इलाके में वन अधिनियम 1927 के तहत बंदोबस्त अधिकारी की रिपोर्ट नहीं होने के बावजूद पूरे क्षेत्र को “जीरो जोन” घोषित कर दिया गया है। मीडिया और नागरिकों की आवाज़ तक पर पाबंदी लगा दी गई है।जिसके चलते मीडियाकर्मी प्रशासन के खिलाफ धरने पर बैठ गए।

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धरने पर बैठे मीडियाकर्मी

ग्राम स्तरीय वन अधिकार समिति की अध्यक्ष धना तिवारी और सदस्य सीमा तिवारी ने प्रशासन को हाईकोर्ट स्टे की जानकारी दी, लेकिन इसके बावजूद उन्हें और उनके परिवार को पीटा गया और हिरासत में लिया गया। इस बात का अभी तक कोई पता नहीं है कि वे कहाँ हैं।

समाजवादी लोक मंच के संयोजक मुनीष कुमार के अनुसार, प्रेस विज्ञप्ति जारी करने पर पुलिस उनके कार्यालय पहुंच गई और उन्हें नोटिस वापस लेने का दबाव बनाया गया।

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मुनीष कुमार और प्रभात ध्यानी ने सभी प्रबुद्ध नागरिकों और सामाजिक संगठनों से अपील की है कि वे उत्तराखंड में अतिक्रमण और कानून की अवहेलना के खिलाफ आवाज़ उठाएं और सरकार तथा प्रशासन पर कानून के अनुपालन का दबाव बनाएं। उनका कहना है कि जो व्यक्ति अपनी जमीन पर रह रहा है उसे उसका अधिकार दिया जाए और यदि किसी को हटाना भी है तो पुनर्वास की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।