
रामनगर। पूछड़ी गांव में वन विभाग व प्रशासन की ओर से चलाए जा रहे अतिक्रमण हटाने के अभियान के खिलाफ संयुक्त संघर्ष समिति रामनगर ने मुख्यमंत्री, जिलाधिकारी और उप जिलाधिकारी को ज्ञापन भेजकर कार्रवाई को पूरी तरह गैर-कानूनी बताया है। संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने आरोप लगाया कि वन अधिकार कानून 2006, न्यायालय के आदेश और कानूनी प्रक्रिया की अनदेखी करते हुए सुबह 5 बजे से बुलडोजर कार्रवाई शुरू की गई।
संयुक्त संघर्ष समिति के अनुसार, पूछड़ी गांव में पिछले वर्ष ग्राम स्तरीय वन अधिकार समिति का गठन हो चुका है। कानून के मुताबिक समिति बनने के बाद अंतिम निर्णय से पहले किसी भी व्यक्ति को घर-जमीन से बेदखल नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद 39 ऐसे लोगों को हटाया जा रहा है जिन्हें हाईकोर्ट से स्टे मिला हुआ है।
समिति ने यह भी आरोप लगाया कि 1966 में पूछड़ी क्षेत्र को आरक्षित वन घोषित करने की जो कानूनी प्रक्रिया थी, उसकी बंदोबस्त रिपोर्ट तक वन विभाग के पास नहीं है—इसकी जानकारी विभाग ने सूचना आयोग में शपथपत्र पर दी थी। इसके बावजूद पूरे गांव को बैरिकेडिंग कर ‘जीरो जोन’ घोषित कर दिया गया है, जहां मीडिया सहित किसी को प्रवेश नहीं दिया जा रहा।
समिति ने बताया कि ग्राम स्तरीय वन अधिकार समिति की अध्यक्ष धना तिवारी और सदस्य सीमा तिवारी को कोर्ट स्टे दिखाने के बावजूद हिरासत में लिया गया और दुर्व्यवहार किया गया। वर्तमान में उनका पता तक नहीं चल पा रहा है। कई कार्यकर्ताओं व नागरिकों को भी हिरासत में रखा गया है, जबकि 29 लोगों को शांति भंग का नोटिस जारी किया गया है।
समाजवादी लोकमंच के संयोजक मुनीष कुमार द्वारा प्रेस बयान जारी करने पर उनके कार्यालय में पहुंचकर दबाव बनाने का आरोप भी प्रशासन पर लगाया गया है। संघर्ष समिति का कहना है कि यह कार्रवाई पूरी तरह से दमनकारी है और कानून व्यवस्था की गंभीर अवहेलना है।
संयुक्त संघर्ष समिति ने देशभर के जनसंगठनों, नागरिकों और बुद्धिजीवियों से अपील की है कि वे वन विभाग और प्रशासन द्वारा कथित कानून उल्लंघन के खिलाफ आवाज उठाएं। समिति ने मांग की है कि अतिक्रमण के नाम पर लोगों को उजाड़ने की नीति पर रोक लगे, निवास कर रहे लोगों को मालिकाना हक दिया जाए और यदि विस्थापन आवश्यक हो तो पहले उचित पुनर्वास सुनिश्चित किया जाए।
संघर्ष समिति की ओर से प्रभात ध्यानी, गिरीश चंद्र आर्य, कैसर राणा, सुमित, किशन शर्मा, तुलसी छिम्बाल और अन्य हस्ताक्षरकर्ताओं ने उप जिलाधिकारी से वार्ता कर ज्ञापन सौंपा तथा घटनास्थल पर जाने की अनुमति मांगी, किन्तु प्रशासन ने अनुमति देने से इनकार कर दिया।
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