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त्याग,बलिदान व कौमी एकता की मिसाल बनी पहली मुस्लिम शिक्षिका फातिमा शेख को उनके 191वें जन्मदिन पर किया याद।

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रामनगर-कोमी एकता की प्रतीक और देश की प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख का 191 वें जन्मदिवस के अवसर पर ग्राम पूछडी में महिला एकता मंच द्वारा आम सभा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।मंच का संचालन करते हुए कौशल्या ने कहा कि फातिमा शेख के नाम से देश के बहुत ही कम लोग परिचित हैं।

शासन-सत्ता पर बैठे हुए लोग नहीं चाहते कि हम महिलाएं अपने पूर्वज महिलाओं के त्याग और बलिदान से परिचित हों, जिन्होंने महिलाओं व समाज की बेहतरी के लिए अपना जीवन निछावर कर दिया। सरस्वती जोशी ने कहा कि ज्योतिबा फुले व सावित्रीबाई फुले की महिलाओं और बहुजनों को शिक्षित करने की मुहिम कट्टरपथियों को बर्दास्त नहीं हुयी और उन्होंने फुले दम्पत्ति के पिता पर दबाव बनाकर उन्हें घर छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। ऐसे कठिन समय में उनके मित्र उष्मान शेख और उनकी बहन फातिमा शेख ने न केवल फुले दम्पत्ति को अपने घर में शरण दी बल्कि उन्हें महाराष्ट्र के पूना पैठ (पूना) में लड़कियों के लिए स्कूल खोलने के लिए जगह भी दी,और लड़कियों को शिक्षित करने में अहम भूमिका अदा की।

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मंच की संयोजक ललिता रावत ने बताया कि उस दौर में शूद्रों और महिलाओं को शिक्षा पाने का अधिकार नहीं था। ऐसे कठिन समय में फातिमा शेख ने सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर लड़कियों और शूद्रों को पढ़ाने की शुरुआत की। फातिमा शेख स्कूल में न केवल पढ़ाने का काम करती थीं बल्कि वे घर-घर जाकर लड़कियों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए, उनके स्कूल में आने के लिए भी प्रोत्साहित भी करती थीं। इस कारण उन्हें भी सावित्रीबाई फले की तरह ही दकियानूसी-पोंगापंथी समाज के आक्रोश का सामना करना पड़ता था।

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ऊषा पटवाल ने कहा कि आज भी महिलाओं को समाज में वास्तविक रुप से समानता का अधिकार नहीं मिला है। पंचायतों में ज्यादातर जगहों पर आज भी महिलाओं की जगह प्रधान पति काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमें अपनी पूर्वज फातिमा शेख, दुर्गा भाभी, प्रीतिलता, बीबी गुलाबों कौर जैसी नायिकाओं से प्रेरणा लेकर महिलाओं की बराबरी, शिक्षा, रोजगार के लिए अपने संघर्ष को आगे बढ़ाने की जरूरत है।इस दौरान शाहिस्ता, फरजाना, कशिश, शाहजहां ,महक,आयशा, कौशल्या, दुर्गा देवी ,मुनीष कुमार, दीपक, हेम आर्य, सुरेश लाल, लालता श्रीवास्तव, किसन शर्मा आदि मौजूद रहे।