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केदारघाटी के देवर गांव में लोकमंगल के लिए पांडव नृत्य 20 नवम्बर से शुरू होगा

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गुप्तकाशी।केदारघाटी के सैन्य बहुल देवर गांव में 20 नवम्बर से पांडव नृत्य का अनुष्ठान शुरू होगा। देवर गांव में पारंपरिक रूप से आयोजित होने वाले पांडव नृत्य की अनेक विशिष्टताएं हैं। यहां करीब डेढ़ शताब्दी से पांडव नृत्य का आयोजन किया जा रहा है।

लोक मंगल की कामना से किए जाने वाले देवर गांव के पांडव नृत्य को इस घाटी में एक स्थापित मानक के रूप में भी गिना जाता है। लोक मंगल और लोक रंजन का यह आयोजन लगभग एक माह तक चलेगा। 20 नवम्बर को ध्वज पूजन के साथ यह अनुष्ठान विधिवत शुरू होगा। आयोजन समिति के अध्यक्ष तथा लोक संस्कृति के मर्मज्ञ दयाल सिंह चौहान को इस आयोजन की सफलता का गुरुत्तर दायित्व दिया गया है जबकि चंद्रपाल सिंह चौहान को संरक्षक, गंगा सिंह चौहान को संयोजक, विनोद नौटियाल को कार्यक्रम संचालक, जगदीश चौहान को कोषाध्यक्ष का दायित्व दिया गया है।
गौरतलब है कि देवर क्षेत्र का बड़ा गांव है। यहां करीब ढाई सौ से अधिक परिवार हैं। इस कारण देवर गांव अपनी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण का अग्रदूत भी माना जाता है। किसी जमाने में गुप्तकाशी की ग्यारह गांव रामलीला और देवर का पांडव नृत्य क्षेत्र के सांस्कृतिक वैभव की पहचान माने जाते थे। देवर गांव के लोगों ने आपाधापी के दौर के बावजूद अपनी सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखा है।
ग्राम प्रधान लक्ष्मी देवी की अध्यक्षता में हुई बैठक में पांडव नृत्य के सफल आयोजन के लिए बाकायदा जिम्मेदारियां सौंप दी गई हैं। समिति में अन्य पदाधिकारियों के अलावा उदय सिंह चौहान को सह संचालक, लोकेश चौहान को सचिव, प्रेमसिंह चौहान को उपाध्यक्ष, गीता देवी को सह सचिव और विजयपाल सिंह चौहान को विशेष सलाहकार बनाया गया है। इसके साथ ही करीब एक माह तक चलने वाले इस कार्यक्रम की तैयारियां तेज कर दी गई हैं। बुधवार को पंचांग पूजा के साथ दिन और मुहूर्त निर्धारित किए जाने के साथ ही ग्राम वासी अपने अपने दायित्वों के निर्वहन में जुट गए हैं।
उल्लेखनीय बात यह है कि पांडव नृत्य के दौरान महाभारत के सभी महत्वपूर्ण प्रसंगों का यहां लोकमंच में प्रस्तुतिकरण की शताब्दी पुरानी परंपरा है। चक्रव्यूह, कमलव्यूह, ऐरावत हाथी, गैंडा प्रसंगों का जीवंत अभिनय देखने लोग दूर दूर से देवर गांव में आते रहे हैं। इन प्रसंगों के अभिनय और प्रस्तुतिकरण में देवर गांव के कलावंतों की महारत मानी जाती रही है। कई बार कुछ दूसरे गांवों से भी लोक मार्गदर्शन लेने देवर आते रहे हैं। केदारघाटी में इसी तरह की विशेषज्ञता कंडारा गांव के कलावंतों की मानी जाती है। बहरहाल पांच साल बाद देवर गांव में हो रहे इस आयोजन के प्रति क्षेत्र के लोगों में जिज्ञासा भी बनी हुई है।