
रुद्रपुर/हरिद्वार।मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) के आह्वान पर ‘अखिल भारतीय मज़दूर अधिकार दिवस’ के अवसर पर देशभर में मज़दूर विरोधी चार श्रम संहिताओं (लेबर कोड्स) के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए। उत्तराखंड में कुमाऊं मंडल का केंद्रीय प्रदर्शन रुद्रपुर के गांधी पार्क में जबकि गढ़वाल मंडल का मुख्य कार्यक्रम हरिद्वार में आयोजित किया गया, जहां मज़दूरों ने सभा, रैली और जुलूस निकालकर सरकार की नीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद की।

रुद्रपुर में कुमाऊं स्तरीय प्रदर्शन, मुख्य बाजार में जुलूस
रुद्रपुर के गांधी पार्क में आयोजित कुमाऊं स्तरीय मज़दूर सभा के बाद मुख्य बाजार में विशाल जुलूस निकाला गया। इस दौरान 12 केंद्रीय मांगों का ज्ञापन राष्ट्रपति को तथा 17 सूत्रीय मांगों का ज्ञापन मुख्यमंत्री उत्तराखंड को भेजा गया। वक्ताओं ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा 21 नवंबर से लागू की गई चार श्रम संहिताएं मज़दूर वर्ग पर अब तक का सबसे बड़ा हमला हैं, जिनसे रोज़गार सुरक्षा खत्म हो रही है, काम के घंटे बढ़ रहे हैं और सामाजिक सुरक्षा कमजोर की जा रही है।

सभा को संबोधित करते हुए सेंटर फॉर स्ट्रगलिंग ट्रेड यूनियंस (CSTU) के मुकुल और इंकलाबी मज़दूर केंद्र (IMK) के रोहित रुहेला ने कहा कि निजीकरण, ठेका प्रथा और कॉर्पोरेट-सरपरस्त नीतियों ने मज़दूरों को हाशिए पर धकेल दिया है। सरकारी संपत्तियों की बिक्री, शिक्षा-स्वास्थ्य का निजीकरण और बढ़ती महंगाई ने मेहनतकश वर्ग की मुश्किलें कई गुना बढ़ा दी हैं।

हरिद्वार में महासभा व मज़दूर बस्ती में रैली
गढ़वाल मंडल में हरिद्वार के चिन्मय डिग्री कॉलेज, शिवालिक नगर चौक पर महासभा आयोजित की गई, जिसके बाद रावली महदूद मज़दूर बस्ती में जागरूकता रैली निकाली गई। कार्यक्रम की शुरुआत क्रांतिकारी गीत से हुई। इंकलाबी मज़दूर केंद्र के जय प्रकाश ने कहा कि 29 केंद्रीय श्रम कानूनों को खत्म कर लाए गए लेबर कोड्स मज़दूरों को 100–150 साल पीछे ले जाने वाले हैं। महिलाओं से रात की पाली में काम कराने जैसे प्रावधान महिला सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हैं।

मज़दूर संघर्ष संगठन के कुलदीप ने कहा कि 300 से कम मज़दूर वाले कारखानों में छंटनी और तालाबंदी की छूट देकर पूंजीपतियों को खुली छूट दी गई है, जबकि ट्रेड यूनियन बनाना और हड़ताल करना मुश्किल कर दिया गया है। नए कानूनों में प्रशिक्षु, एफटीई, नीम-नेप्स जैसे श्रमिकों को मज़दूर की परिभाषा से बाहर कर दिया गया है।

प्रमुख मांगें
मासा द्वारा लेबर कोड्स को रद्द करने के साथ 12 सूत्रीय मांगें प्रमुखता से उठाई गईं, जिनमें स्कीम वर्कर्स को स्थायी करने, न्यूनतम वेतन 30 हजार रुपये तय करने, ठेका प्रथा खत्म करने, समान काम-समान वेतन, सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण पर रोक, मनरेगा में 300 दिन काम व 1000 रुपये दैनिक मजदूरी, गिग व प्लेटफॉर्म वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा तथा उत्तराखंड में वेज बोर्ड गठन और महंगाई भत्ता लागू करने जैसी मांगें शामिल हैं।

सैकड़ों मज़दूरों की भागीदारी
दोनों मंडलों में आयोजित कार्यक्रमों में महिला मज़दूरों सहित सैकड़ों श्रमिकों, विभिन्न ट्रेड यूनियनों, किसान संगठनों, छात्र व महिला संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि कॉर्पोरेट-परस्त नीतियों के खिलाफ देशव्यापी मज़दूर एकजुटता ही इन “काले कानूनों” को वापस करवाने का रास्ता है।
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