उत्तराखंडकुमाऊंनैनीताल

4 नए लेबर कोड लागू: मजदूर संगठनों ने बताया, आज़ाद भारत में श्रमिक अधिकारों पर सबसे बड़ा हमला

ख़बर शेयर करें

रामनगर। केंद्र सरकार द्वारा 21 नवंबर को चार नए लेबर कोड लागू करने की घोषणा के बाद श्रमिक संगठनों में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली है। इंकलाबी मजदूर केंद्र ने इन लेबर कोड्स को “मजदूरों की गुलामी के नए दस्तावेज” बताते हुए तत्काल वापस लेने की मांग की है। संगठन का आरोप है कि ये कोड देशी-विदेशी पूंजीपतियों के हित में तैयार किए गए हैं और स्वतंत्र भारत में मजदूरों पर किया गया यह सबसे बड़ा हमला है।

हड़ताल से लेकर 8 घंटे कार्यदिवस तक—अधिकारों पर व्यापक चोट

नए लेबर कोड—

वेतन संहिता (2019), औद्योगिक संबंध संहिता (2020), व्यावसायिक संरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यदशा संहिता (2020) और सामाजिक सुरक्षा संहिता (2020)—के लागू होने के बाद श्रमिकों के कई मूलभूत अधिकार प्रभावित होंगे।

यह भी पढ़ें 👉  श्रम संहिताओं से नए कार्ययुग की शुरुआत—सीएम धामी बोले: श्रमिकों को मिलेगा सुरक्षा, उद्योगों को सुगमता

संगठन ने आरोप लगाया कि इन कोड्स में—

8 घंटे कार्यदिवस का अधिकार कमज़ोर किया गया,

हड़ताल को लगभग असंभव बनाने जैसी कठोर शर्तें जोड़ी गईं,

गैर-कानूनी हड़ताल में शामिल मजदूरों पर भारी जुर्माने और जेल की सज़ा का प्रावधान कर आंदोलन को अपराधीकरण की राह पर धकेला गया है।

श्रमिक सुरक्षा से जुड़े नियमों को भी “ढीला” बताया गया है, जिसे संगठन मजदूरों के जीवन से खिलवाड़ के बराबर मान रहा है।

हायर-एंड-फायर को बढ़ावा, महिला मजदूरों पर भी प्रतिकूल असर

कोड्स में प्रशिक्षुओं को मजदूर की परिभाषा से बाहर कर दिया गया है, वहीं फैक्ट्रियों में स्थायी कार्यों के लिए भी फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट की अनुमति देकर कंपनियों को “रखो और निकालो” जैसी नीति को बढ़ावा दिया गया है।

यह भी पढ़ें 👉  अल्मोड़ा-हल्द्वानी मार्ग पर दर्दनाक हादसा: शादी समारोह जा रहे चार शिक्षकों की कार शिप्रा नदी में गिरी, तीन की मौत, एक घायल

संगठन ने यह भी कहा कि खतरनाक उद्योगों और रात की पाली में महिला मजदूरों को काम पर लगाने का अधिकार देकर सरकार ने “महिला सशक्तिकरण” के नाम पर पूंजीपतियों को खुली छूट दी है।

न्याय व्यवस्था में ‘प्रशासनिक दखल’, फैक्टरी निरीक्षण कमजोर

इंकलाबी मजदूर केंद्र का कहना है कि लेबर कोड्स में न्यायिक व्यवस्था को कमजोर किया गया है।

फैक्टरी इंस्पेक्टर अब ‘फैसिलिटेटर’ बना दिए गए हैं,

उद्योगों को Self Certification का अधिकार देकर निरीक्षण प्रणाली को कमजोर किया गया है,

300 कर्मचारियों तक की फैक्ट्रियों में बिना सरकारी अनुमति छंटनी का रास्ता खोल दिया गया है।

इसके अलावा ठेका प्रथा को “बेलगाम” करने का आरोप भी लगाया गया है।

“उदारीकरण-निजीकरण के एजेंडे की पराकाष्ठा”

संगठन ने कहा कि इन कोड्स के लागू होने से सरकार ने उदारीकरण और निजीकरण की नीतियों को चरम पर पहुंचा दिया है।

यह भी पढ़ें 👉  गुलदार का खूनी हमला: कोटी गांव की 65 वर्षीय महिला को बनाया निवाला, क्षेत्र में दहशत

उनके मुताबिक यह कदम मजदूरों के लिए “हिंदू राष्ट्र” की वास्तविक तस्वीर दिखाता है, जिसमें श्रमिक अधिकारों को धीरे-धीरे समाप्त किया जा रहा है।

मजदूरों का ऐलान—संघर्ष तेज़ होगा

इंकलाबी मजदूर केंद्र का कहना है कि मजदूर इस हमले को चुपचाप नहीं सहेंगे।संगठन का दावा है कि किसान आंदोलन से प्रेरणा लेते हुए श्रमिक भी इन कोड्स के खिलाफ देशभर में संघर्ष को गति देंगे।

संगठन ने कहा कि इतिहास गवाह है—

“मजदूर अपने अधिकार किसी की मेहरबानी से नहीं, बल्कि संघर्ष से हासिल करते हैं। जो अधिकार छीने जा रहे हैं, उन्हें हम अपने आंदोलन से वापस लेकर रहेंगे।”