देहरादून। मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, देहरादून ने सीओपीडी बीमारी के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य जनता को COPD (क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) के बारे में जानकारी देना, समय पर इलाज कराने के महत्व को समझाना और फेफड़ों से संबंधित बीमरियों के प्रति जागरूक करना था।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में पल्मोनोलॉजिस्ट, डॉ. विवेक वर्मा प्रिंसिपल कंसल्टेंट पल्मोनोलॉजी और डॉ. वैभव चाचरा प्रिंसिपल कंसल्टेंट पल्मोनोलॉजी ने इस बीमारी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी साझा की।
सीओपीडी विश्न में गैर-संक्रमण रोगों से होने वाली मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण और अन्य बीमारियों के साथ मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण है। इस प्रेस कॉफ्रेस में डॉ. चाचरा ने बताया कि “देहरादून में बढ़ते प्रदूषण के कारण सांस संबंधी बीमारियों, खासकर कि सीओपीडी में वृद्धि हो रही है। सीओपीडी एक दीर्घकालिक रोग है जो धीरे-धीरे विकसित होता है और समय के साथ मरीज को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है ,अगर इसका सही समय पर उपचार नहीं कराया गया , तो मरीज की स्थिति गम्भीर हो सकती है।
डॉ. चाचरा ने बताया कि सीओपीडी का प्रमुख कारण धूम्रपान है। अपने एक मरीज का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि 61 वर्षीय मरीज अनुरोध चमोली तीन साल पहले गंभीर सीओपीडी की बीमारी से जूझते हुए मैक्स हॉस्पिटल आए थे। उन्हें सांस लेने में परेशानी हो रही थी और हालत भी बहुत गंभीर थी, हमने उन्हें तुरंत इंट्यूबेटेड करके ICU में वेंटिलेटर में रखा, कुछ दिनों के बाद उनके स्वास्थय में सुधार आया और वह ठीक होकर अपने घर चले गए। आज वह बिलकुल ठीक है और अब वह रेगूलर चेकअप करवाते रहते हैं।
इस मौके पर डॉ. वैभव चाचरा ने बताया कि सीओपीडी (क्रोनिक ऑबस्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीस) फेफड़ों की एक क्रॉनिक बीमारी है, जो मुख्य रूप से फेफड़ों में हवा के प्रवाह को रोकता है, जिससे फेफड़ों में सूजन आ जाती है, जिससे व्यक्ति को साँस लेने में दिक़्क़त, अतिरिक्त बलगम बनना, खांसी, और अन्य समस्याएँ होती हैं। यदि इसका सही समय पर इलाज नहीं कराया गया, तो यह जानलेवा बन सकती है, साथ ही यह गंभीर हृदय समस्याओं, फेफड़ों के कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियाँ उत्पन्न कर सकती है। उन्होंने बताया कि बढ़ते प्रदूषण के कारण भी फेफड़ों के रोगियों की संख्या बढ़ रही है, जिसमें सीओपीडी भी एक प्रमुख बीमारी है। यह बीमारी आम तौर पर मध्यम आयु वर्ग के लोगों (40 वर्ष या उससे अधिक) के लोगों में होने की संभावना अधिक होती है। सीओपीडी के मुख्य कारण धूम्रपान, लंबे समय तक वायु प्रदूषण का संपर्क, रासायनिक धुआँ, धूल, चूल्हे का धुआं आदि है।
डॉ. विवेक वर्मा ने बताया कि सीओपीडी मुख्यतय दो प्रकार की होती है एक वातस्फीति (एम्फाइसेमा ) – इसमें, वायुकोष और उनकी दीवारें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं एवं छोटी वायुकोषों के स्थान पर बड़ी वायुकोषं बन जाती हैं और दूसरा क्रोनिक ब्रोंकाइटिस – इसमें, वायु नलियों की परत में सूजन आ जाती है और वह मोटी हो जाती है। इससे बहुत अधिक मात्रा में बलगम बनता है और सांस लेना मुश्किल हो जाता है।
उन्होंने कहा कि ये पूरी तरीके से ठीक नही हो सकती है लेकिन सही इलाज और कुछ एतिहात बरतने से काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।
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