
रामनगर। गढ़वाल और कुमाऊँ मंडल को जोड़ने वाली बहुप्रतीक्षित कंडी सड़क का मार्ग अब लगभग साफ माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच—जिसमें स्वयं देश के चीफ जस्टिस शामिल हैं—ने 17 नवंबर 2025 को दिए महत्वपूर्ण आदेश में सभी नेशनल पार्कों के लिए एक समान नीति बनाने, विकास योजनाओं में बाधाएँ दूर करने, धार्मिक स्थलों को जोड़ने तथा स्थानीय जनहित को प्राथमिकता देने की बात कही है। कोर्ट ने लाइनियर डेवलपमेंट मॉडल अपनाने का संकेत देकर उन परियोजनाओं के लिए नई उम्मीद जगा दी है जो वर्षों से कानूनी अड़चनों में फंसी थीं।
सबसे बड़ा लाभ उस कंडी रोड को मिलता दिख रहा है, जो रामनगर से कालागढ़ होते हुए कोटद्वार को जोड़ती है। यह सड़क राज्य की सीमाओं के भीतर होकर भी दशकों से आम यातायात के लिए बंद पड़ी है, जिसके कारण लोगों को गढ़वाल–कुमाऊँ आने-जाने के लिए उत्तर प्रदेश के रास्ते पर निर्भर रहना पड़ता है।
पत्रकार वार्ता में संयुक्त संघर्ष समिति से जुड़े याचिकाकर्ता पीसी जोशी, प्रभात ध्यानी, ललित उप्रेती, भुवन पांडे और आसिफ ने बताया कि यह आदेश उत्तराखंड के लिए ऐतिहासिक है। उन्होंने कहा कि एक ही राज्य के दो मंडलों के बीच यात्रा के लिए दूसरे राज्य की सड़क का सहारा लेना मजबूरी बन चुका था। कई बार आंदोलन हुए, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खटखटाए गए, तब जाकर यह राहत मिली है।
प्रभात ध्यानी ने बताया कि नेशनल पार्क और अभयारण्यों की सीमाओं के चलते बिजली, पानी और सड़क जैसी कई महत्वपूर्ण सरकारी योजनाएँ वर्षों से अटकी थीं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा समान नीति और लाइनर डेवलपमेंट के सिद्धांत को लागू करने का निर्देश आने से अब इन परियोजनाओं के रास्ते खुलेंगे।
संयुक्त संघर्ष समिति ने बताया कि जल्द ही रामनगर और कोटद्वार में जनप्रतिनिधियों, स्थानीय लोगों और समाजिक संगठनों के साथ बैठकें की जाएँगी, ताकि कंडी सड़क को आम यातायात के लिए खोलने की दिशा में सरकार पर दबाव बनाया जा सके।
यह आदेश प्रदेश की कनेक्टिविटी और विकास योजनाओं के लिए एक नए अध्याय की शुरुआत माना जा रहा है।
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